प्रणाम गुरुवर..!!  प्रभु शिव की कृपा एवं आप गुरु के आशीर्वाद से आज की साधना के दरम्यान जो अप्रतिम अनुभूति प्राप्त हुई वह केवल आप समर्थ गुरू की विशेष कृपाशीष है।
आज प्रातः गुरु मंत्र के जप समय मेरे आज्ञा चक्र में एक मणि थी जो मैंने “”(———-)”” मंत्र के जप के वख्त देखि थी वह अब पूर्ण रूप से सफ़ेद रंग से प्रकाशित थी, वहां सौम्य ऊर्जा बह रही थी ओर सर्व वातावरण को अपने सफेद सौम्य रंग से रंग दिया फिर…ईष्ट साधना के वख्त इसी रोशनी में मैने कमल पर आरूढ़ “माँ त्रिपुरसुंदरी जी और माँ महालक्ष्मी जी” के विराट स्वरूप को देखा, माँ लक्ष्मी इस विराट रूप मे भी वरदमुद्रा थी, यह आश्चर्य की बात है ! क्योंकि अस्त्र-शस्त्र आदि आयुधों के साथ वरदमुद्रा मे मैंने कभी नही देखा वो जो रूप था वह चंडी पाठ के माँ महालष्मी जी का जो ध्यान मंत्र है वैसा रूप वरदमुद्रा के साथ देखा ।

आगे बढ़ते हुए, शिव साधना के समय जब मूलाधार से सहस्त्रार का चक्र शुरू होते ही, मैं अपने शरीर मे से निकल कर, स्वयं अपने आपको देख रहा था, हवा से भी हल्का महसूश कर रहा था, मैं एक प्रकाश पुंज रूपमे आकाश की ओर बढ़ रहा था और वहां आकाश में बादलो के परे एक सांप था जो मुझे देखकर त्वरित चेतन में आ गया और मुझमे समा गया….वह क्षण मेरे पूरे शरीर मे जैसे बिजली सी कोंध गयी और मैं अधिक ऊर्जावान एवं सौम्य प्रकाशित महसूस करने लगा , मै ब्रह्माण्ड में विचरण करते हुए आगे उपर की ओर बढ़े जा रहा था….बढ़े जा रहा था, कि बाबा शिव का विशाल अनंत रूप दिखाई दिया, अनंत बरम्हाण्ड में अनंत शिव….क्या अद्वितीय दृष्य था।

यह परमेश्वर, परमात्मा, पराशक्ति, का अनंत रूप था, मेरे पास दर्शाने हेतु शब्द नही है और होते तो भी शब्दकोश काम पड़ जाता ।
यह सब कृपा मेरे शिव शक्ति एवं मेरे सदगुरु श्री का अनंत आशीष है । गुरुवर निरंतर अपना आशीष बनाए रखे । आज आपकी दी गई साधना से यह अवसर मुझे मिला, ऐसा अवसर सभी गुरु भाईओं को भी मिले यही परमात्मा से प्रार्थना है । ।। जय आदिगुरु ।। ।। जय गुरुदेव ।।