“गुरु-ईष्ट पद्धति” – अद्भुत साधना मार्ग  

—————————————————-

यह एक विशिष्ट साधना प्रणाली है, जो गुरु और ईष्ट की संयुक्त कृपा प्राप्ति द्वारा साधक को निर्बाध आध्यात्मिक उन्नति के साथ, भौतिक जीवन में भी सकारात्मक परिवर्तन प्रदान करने में सक्षम है….!! इस पद्धति में संलग्न सहस्त्रों साधक-साधिकाएं त्वरित परिणामों से उत्साहित होकर अपने साधनात्मक लक्ष्य की ओर निरंतर अग्रसर हो रहे हैं.

यह साधना पद्धति द्वैतवाद और ऊर्जा के सिद्धांत पर आधारित है । सृष्टि की रचना और संचालन दो के द्वारा होता है, जिसे हम “ईश्वर और माया”, “पुरुष और प्रकृति” अथवा “शिव और शक्ति” कहते हैं । मानव योनि में “नर और नारी” इन दो के द्वारा संसार चक्र को गति प्रदान की गई । हमें भी “एक स्त्री और एक पुरुष” इन दो ने जन्म दिया, और माता-पिता बनकर पालन-पोषण किया । “जन्म और मरण” इन दो घटनाओं के मध्य का समय ही हमारा जीवन है, जिसमें हम “जागृत या सुप्त” दो अवस्थाओं में रहते हुए, दो भावों “सुख और दुःख” की अनुभूति करते हैं ।यह संसार “सकारात्मक और नकारात्मक” दो प्रकार की ऊर्जाओं द्वारा संचालित हो रहा है, जिनसे प्रभावित “मन और मस्तिष्क” द्वारा हमारे भीतर देवासुर संग्राम ( अंतर्द्वंद ) घटित होता है. मानव देह को पोषण भी दो प्रकार के पदार्थों से मिलता है “खाद्य पदार्थ और पेय पदार्थ” जो दो स्थानों पर उत्पन्न होते हैं, “भूमि के ऊपर या भूमि के नीचे” इनकी प्रकृति भी दो प्रकार की होती है, “अम्लीय और क्षारीय”।

हम जीवनपर्यन्त दो प्रकार से ज्ञानार्जन करते हैं, “देखकर या सुनकर”. मानव शरीर के अधिकतर महत्वपूर्ण अंग भी दो की संख्या में होने से ही शरीर को पूर्णता और संतुलन प्रदान करते हैं….!!

एक नदी के “दो किनारे” होते हैं, जो उसके प्रवाह को दिशा देते हैं । सृष्टि में जो कुछ भी दृश्य है, वह भी दो ही स्थानों पर है, “धरती पर या आकाश पर” . पृथ्वी के वातावरण को दो ही तत्व सबसे अधिक प्रभावित करते हैं, “जल और वायु”. मित्रों, यदि हम विचार करेंगे तो इसी प्रकार के अनेक उदाहरण हमें प्राप्त होंगे, जो “दो की संख्या” पर हमारी निर्भरता को सिद्ध करते हैं. वास्तव में यह सृष्टि और हमारा समस्त मानव जीवन दो पर ही आधारित है. जिसमें सभी परिवर्तन दो के संयोग से ही संभव हैं.

यही कारण है कि “गुरु-ईष्ट पद्धति” को आधार बनाकर हमारी आध्यात्मिक यात्रा अत्यंत सुगम और प्रभावी हो जाती है. दैवीय गुरु और ईष्ट की संयुक्त कृपा से जीवन में सकारात्मक बदलाव अवश्य आते हैं. यह सत्य गुरु-ईष्ट पद्धति पर चल रहे साधकों द्वारा अनुभूत है, जो साधक उर्जित मंत्र साधना के माध्यम से आत्मा और परमात्मा के अनादि संबंध को पुनर्स्थापित करने में संलग्न हैं. वह इसके साक्षी हैं. यदि आप भी इस मार्ग के पथिक बनना चाहते हैं तो आपको दो तथ्यों पर अवश्य ध्यान देना होगा… “जानना और मानना”…. यही एक जिज्ञासु  से साधक बनने का सूत्र है… !!