by Acharya Ojaswi | ओजस्वी वाणी
कल,एक साधक ने प्रश्न किया था, कि “क्या गुरुकृपा से प्रारब्ध बदल सकता है..? किसी मनुष्य को भाग्यानुसार जीवन में जो उपलब्ध नहीं है… क्या गुरु के आशीर्वाद से उसकी प्राप्ति संभव है ?” तो…इसका उत्तर “नहीं” भी है….. और...
by Acharya Ojaswi | ओजस्वी वाणी
एक साधक ने आग्रह किया है कि, पिछली वार्ता के अंतिम भाग को विस्तार से समझाएं, “जो आंतरिक यात्रा का पथिक नहीं है,वह जो कर रहा है मात्र अपनी संतुष्टि के लिए…” उसमें आगे उद्धरण में स्पष्ट भी किया है, कि सही दिशा में कम चलना, एक सीमित दायरे में अधिक चलने...
by Acharya Ojaswi | ओजस्वी वाणी
पिछली चर्चा में प्रश्न का जो भाग रह गया था,उसे आगे बढ़ाते हैं…. “क्या मनुष्य में आध्यात्मिक रुचि कर्मानुसार होती है ? उत्तर है.. “जी हां” “बड़े भाग मानुष तन पावा, सुर दुर्लभ सद ग्रँथहि गावा” हम मानव योनि में आए यह भी कर्मों की बात ही...
by Acharya Ojaswi | ओजस्वी वाणी
एक साधक का कहना है, कि जब किसीसे आध्यात्मिक चर्चा करो तो वह मज़ाक़ बनाता है, कहता है कि सब छोड़कर बाबाजी बनना है, क्या ? तो क्या किसी नास्तिक से यह चर्चा उचित है क्या ? वास्तव में जब हम किसी क्षेत्र में गतिशील होते हैं, तो स्वाभाविक ही है, कि वह विषय हमारी चर्चा में...
by Acharya Ojaswi | ओजस्वी वाणी
अध्यात्म का विषय अथाह सागर की भांति हैं, जिसके ओर-छोर का कुछ अनुमान लगाना कठिन है । “हरि अनंत हरि कथा अनंता” । आध्यत्मिक लेखन आदिकाल से होता रहा है, जिन्हें रुचि है उनकी पिपासा शांत नहीं होती और ऐसे भी लोग हैं, जो ऐसी वाणी से परेशान हो जाते हैं, उनका मन...
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