“आचार्य ओजस्वी जी”
संक्षिप्त जीवन परिचय
〰️〰️〰️〰️〰️
आचार्य ओजस्वी जी का जन्म भारत की राजधानी दिल्ली के एक ऐसे मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ, जहां आपको बचपन से ही आध्यात्मिक वातावरण प्राप्त हुआ । आपके पिता श्री रामस्वरूप जी सरकारी सेवा में कार्यरत थे, जो आर्यसमाज के सक्रिय सदस्य और प्रकांड वैदिक विद्वान थे । प्राच्य आर्ष ग्रंथों का अध्ययन, नियमित जप, ध्यान, सत्संग आदि में उनकी बहुत रूचि थी, और माता शारदा रानी जी भी धार्मिक विचारों की विदूषी महिला थीं, जो इन पुनीत कार्यों में सदैव सहयोग प्रदान करती थीं ! परिवार में दैनिक वेदपाठ और साप्ताहिक यज्ञ की परम्परा थी, साथ ही संतों, महात्माओं , उपदेशकों आदि का आगमन अक्सर होता रहता, घंटों ज्ञान चर्चा होती थी ! इस वातावरण में ओजस्वी जी को बाल्यकाल से ही विद्वानों की सेवा और उनके विचारों के श्रवण का अवसर प्राप्त हुआ, जिससे उनकी आध्यात्मिक विषयों में रूचि बढ़ने लगी और हृदय में ईश्वर, सृष्टि, प्रलय, जीवन-मृत्यु, ब्रह्मांड की रचना, आदि के रहस्यों के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न होने लगी । पिताजी इनके बालसुलभ प्रश्नों के उत्तर धैर्य से देते, गूढ़ और रहस्यवादी विषयों को सरल शब्दों में समझाते । माताजी संतमत की पुस्तकों के अध्ययन सहित नियमित भजन-सुमिरन और ध्यान का अभ्यास करती थीं । उनसे भी अनेक शंकाओं का समाधान प्राप्त होता, और जीवन मूल्यों के साथ व्यावहारिक समझ प्राप्त हुई ! ऐसे पवित्र संस्कारों और ऊर्जासंपन्न वातावरण में आपका पालन पोषण हुआ ।
ओजस्वी जी, माता-पिता की पांच संतानों में चौथी संतान थे, इनका नाम “ओजप्रिय” रखा गया था, किंतु परिजन स्नेह से “ओज” या “ओजस्वी” सम्बोधित करते थे । आप बचपन से ही विलक्षण प्रतिभाओं के धनी रहे, मात्र सात वर्ष की अल्पायु में प्रथम काव्यरचना लिखी और तेरहं वर्ष की आयु में सार्वजनिक मंच पर प्रथम काव्यपाठ किया । आपकी अन्य रुचियाँ रहीं, विभिन्न विषयों की पुस्तकों का अध्ययन, काव्य लेखन चित्रकारी, प्रादेशिक और विदेशी भाषाएं सीखना, प्राकृतिक स्थलों की यात्रा, विद्वानों व्यक्तियों से चर्चा, आध्यात्मिक प्रश्नों पर तर्क-वितर्क इत्यादि । पंद्रह वर्ष की आयु से ही अंतर्राज्यीय खोज यात्राएं आरम्भ हो गई थीं, जिनके फलस्वरूप आपने अनेक सिद्धजनों का आशीर्वाद एवं विशेष ज्ञानार्जन प्राप्त किया ।
ओजस्वी जी की आयु मात्र सोलह वर्ष थी, जब पिताजी का स्वर्गवास हो गया, इस दुःखद घटना से जीवन में अनेक परिवर्तन तो आए, परन्तु माताजी के अदम्य साहस और धैर्य से परिस्थितियां संभल गईं । यह १९८८ (1988) का समय था, जब विरक्ति का भाव जागृत होने से आध्यात्मिक अध्ययन और एकांत चिंतन सहित खोज यात्राएं भी बढ़ गईं और सामाजिक कार्यों में भी संलग्नता रहने लगी । उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों में भ्रमण करते हुए अनेक ,साधु-संतों, रहस्यवादी विद्वानों से भेंट हुई, और वर्ष १९८९ (1989) में विंध्यवासिनी सिद्धपीठ के महंत अवधूत रमेशानंद गिरी जी महाराज का आशीर्वाद प्राप्त हुआ, जिनसे प्रथम गुरु के रूप में गुरु-ईष्ट पद्धति का ज्ञान प्राप्त हुआ और साधना मार्ग पर पदार्पण किया । १९९० (1990) में ब्रह्मलीन संत पूज्य हृदय नारायण योगीजी का सान्निध्य प्राप्त हुआ, और उनसे तप-सेवा-सुमिरन का दुर्लभ ज्ञान प्राप्त हुआ । योगीजी के साथ, अनेक यात्राएं करने का सुअवसर भी प्राप्त हुआ । उनसे प्राप्त ज्ञान द्वारा मानव जीवन के उद्देश्य स्पष्ट हुए, मन से आसक्ति का भाव कम होने लगा और प्राणिमात्र की निःस्वार्थ सेवा की भावना जागृत हुई ।
आचार्य ओजस्वी जी ने, दिल्ली विश्विद्यालय से स्नातक उत्तीर्ण किया, और काशी से विशारद की उपाधि प्राप्त की । इसके अतिरिक्त भारत के विभिन्न राज्यों के अनेक विद्वानों से पराविज्ञान विषयों का मौलिक ज्ञान ग्रहण करते रहे । अन्वेषण हेतु अनेक पराविद्या सम्मेलनों, संगोष्ठियों, साधना शिविरों, कार्यशालाओं आदि में भाग लिया, और निरंतर ज्ञान वृद्धि करते हुए, आपने इस अर्जित ज्ञान के व्यावहारिक प्रयोगों पर सदैव विशेष बल दिया । आप कहते हैं, कि “ज्ञान वही सार्थक है जो मानव के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायक सिद्ध हो सके” । आप अनेक धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं से जुड़े रहे हैं, और विभिन्न सम्मानजनक पदों को सुशोभित किया है । सोशल मिडिया प्रसार के आरम्भिक समय से ही आप इसपर भी गतिशील रहे और अपूर्व लोकप्रियता प्राप्त की । समान विचारों के अनेक विद्वान मित्र संपर्क में आए ।
आध्यात्मिक साधना क्षेत्र में आचार्य ओजप्रिय ओजस्वी जी का अमूल्य योगदान रहा है । विशेषकर ऊर्जा के सिद्धांत पर आधारित “गुरु-ईष्ट पद्धति” के माध्यम से आत्मिक उन्नति हेतु, आपने २०१७ (2017) में सर्वप्रथम ऑनलाइन कक्षाओं का शुभारंभ किया, यह व्यवस्था अत्यंत लोकप्रिय हुई, जिसके माध्यम से हज़ारों जिज्ञासुओं को साधना मार्ग का वास्तविक परिचय प्राप्त हुआ, और आचार्य जी की इस पहल ने “राष्ट्रीय कीर्तिमान” भी स्थापित किया । वर्ष २०१८ (2018) में आपको “First Online Guide for Occult Science in India” की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया । इन विभिन्न आध्यत्मिक और सामाजिक कार्यों को वैश्विक विस्तार देने के उद्देश्य से जून २०१८ (2018) में “वैदिक योग अध्यात्म सेवा संस्थान” अंतराष्ट्रीय ट्रस्ट की स्थापना की गई, और इन वर्षों में विभिन्न आध्यात्मिक और सामाजिक कार्य इसके माध्यम से संपन्न हुए हैं । पुन: २०१९ (2019) में एक अन्य राष्ट्रीय कीर्तिमान संस्था द्वारा निर्मित हुआ, जब चर्चित “रहस्य यात्रा” को “India Occult Expedition -2019” का अलंकरण और इसके १२ यात्रियों को “राष्ट्रीय कीर्तिमान सम्मान’ प्राप्त हुआ । संस्था द्वारा नियमित ऑनलाइन कक्षाओं, चर्चाओं सहित अन्वेषक यात्राओं का आयोजन किया जाता है । मार्गदर्शक लेख “ओजस्वी वाणी’ का प्रसार और मासिक संगोष्ठी सहित अनेक वार्षिक आयोजन भी किए जाते हैं, जो इस क्षेत्र में मील के पत्थर सिद्ध हुए हैं । संस्था की अनेक विशिष्ट योजनाएं हैं, जो भविष्य में मूर्तरूप लेने वालीं हैं । ओजस्वी जी के अथक प्रयासों से यह संस्थान निरंतर उन्नति के पथ पर अग्रसर है, उनकी इस “ओजस्वी यात्रा” को तीन दशक से अधिक समय हो चुका है, और यह निर्बाध गति से अनंत लक्ष्य की ओर अग्रसर है ।