आचार्य ओजस्वी
स्वागत सन्देश
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मित्रों प्रणाम !! इस आध्यात्मिक एवं आत्मविकास के पथ पर, सभी का हृदय से स्वागत है । आप विश्व के किसी भी स्थान पर हों, संस्था से जुड़ सकते हैं । योग्यता हेतु आपका ईश्वर के प्रति आस्थावान होना तथा सब प्राणियों के कल्याण की कामना रखना ही पर्याप्त है । संस्था के सभी सदस्य हमारे सोशल मिडिया समूहों के माध्यम से संपर्क में रहते हैं, और उन्हें सभी जानकारी और आवश्यक मार्गदर्शन प्राप्त होता है । ऑनलाइन कक्षाओं/चर्चाओं सहित मासिक साधक संगोष्ठी, विशेष उत्सवों, आध्यात्मिक यात्राओं, साधना शिविरों आदि, विभिन्न आयोजनों के माध्यम से सभीको व्यवहारिक ज्ञान तो मिलता ही हैं, साथ ही, इस विशाल साधक परिवार के सदस्य होने का गौरव भी प्राप्त होता है । इस प्रेम-सौहार्द के वातावरण में सभी सदस्यों का परस्पर सहयोग और सामंजस्य, इस यात्रा को रोमांचक और आनंदमय बनाता है । आप भी इस अनंत यात्रा के पथिक बनकर, जीवन को नई दिशा प्रदान कर सकते हैं….नए अनुभव प्राप्त कर सकते हैं ।
गुरु-ईष्ट साधना पद्धति
साधकों के अनुभव
सेवाएं
शीघ्र उपलब्ध होंगी |
विभिन्न गतिविधियां
साधना प्रकल्प
“साधना प्रकल्प” संस्था का प्रमुख प्रकल्प है । यह विश्व की “सर्वप्रथम ऑनलाइन पराविज्ञान प्रशिक्षण योजना” भी है, जिसकी परिकल्पना एवं संचालन के लिए, गुरुदेव ओजस्वी जी द्वारा वर्ष 2018 में “राष्ट्रीय कीर्तिमान” स्थापित किया गया और …. और पढ़ें
यात्रा प्रकल्प
हमारा यह मानव जीवन भी एक यात्रा ही है, किन्तु साधना मार्ग पर अग्रसर एक साधक की यात्रा का तो कुछ विशेष ही अर्थ होता है । गुरुदेव आचार्य ओजस्वी जी द्वारा विशेषकर संस्था से जुड़े साधकों के लिए “यात्रा प्रकल्प” का शुभारंभ किया गया । इस प्रकल्प ने “यात्रा” शब्द को नए आयाम दिए, और …. और पढ़ें
सेवा प्रकल्प
हमारी संस्कृति में प्राणी मात्र की सेवा का महत्वपूर्ण स्थान है, हम प्रत्येक आत्मा में परमात्मा के दर्शन करते हैं । हिन्दू दर्शन में सेवा के बिना धर्म पालन का कोई अर्थ नहीं, क्योंकि यह एक ईश्वरीय भाव है, जो धर्म का ही अंग है । सेवा आत्मकल्याण का मार्ग है …. और पढ़ें
सहयोग प्रकल्प
“वैदिक योग अध्यात्म सेवा संस्थान®” में “सहयोग प्रकल्प” के माध्यम से सेवा कार्यों को विस्तार दिया गया है । इसके अंतर्गत कुछ विशेष सामाजिक कार्यों का प्रावधान रखा गया है, जिनमें विभिन्न सेवाएं संस्था द्वारा उपलब्ध कराने की योजना है । …. और पढ़ें
ओजस्वी वाणी
ओजस्वी वाणी (5)
कल,एक साधक ने प्रश्न किया था, कि "क्या गुरुकृपा से प्रारब्ध बदल सकता है..? किसी मनुष्य को भाग्यानुसार जीवन में जो उपलब्ध नहीं है... क्या गुरु के आशीर्वाद से उसकी प्राप्ति संभव है ?" तो...इसका उत्तर "नहीं" भी है..... और "हाँ" भी.... अब, एक प्रश्न के दो उत्तर कैसे !! यह...
ओजस्वी वाणी (4)
एक साधक ने आग्रह किया है कि, पिछली वार्ता के अंतिम भाग को विस्तार से समझाएं, "जो आंतरिक यात्रा का पथिक नहीं है,वह जो कर रहा है मात्र अपनी संतुष्टि के लिए..." उसमें आगे उद्धरण में स्पष्ट भी किया है, कि सही दिशा में कम चलना, एक सीमित दायरे में अधिक चलने से बेहतर है ।...
ओजस्वी वाणी (3)
पिछली चर्चा में प्रश्न का जो भाग रह गया था,उसे आगे बढ़ाते हैं.... "क्या मनुष्य में आध्यात्मिक रुचि कर्मानुसार होती है ? उत्तर है.. "जी हां" "बड़े भाग मानुष तन पावा, सुर दुर्लभ सद ग्रँथहि गावा" हम मानव योनि में आए यह भी कर्मों की बात ही तो है....क्योंकि यही मार्ग है,.....